कितने बजे निकलेगा चांद?
करवा चौथ व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख हिंदू त्यौहार है। करवा चौथ का त्योहार हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। साल 2023 में 1 नवंबर को करवा चौथ मनाया जाएगा। करवा चौथ पर महिलाएं चांद की पूजा करती है। इस साल चांद किस समय निकलेगा और पूजा करने का शुभ मुहूर्त क्या होगा? इस साल पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त शाम को 5:36 से शुरू हो जाएगा 6:40 तक रहेगा। चंद्रोदय 8:10 पर होगा। पूजा की अवधि 1 घंटा 6 मिनट रहेगी। अमृत कल शाम 7:34 से 9:13 तक रहेगा। रात 9:19 पर चतुर्थी तिथि समाप्त हो जाएगी।
करवा चौथ व्रत मुख्य रूप से हरियाणा और पंजाब में मनाया जाता है और अब यह देश के लगभग हर हिस्से में मनाया जाता है। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत करती है, उनकी सफलता की मनोकामना करती है। इस दिन महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय और भगवान गणेश की पूजा करती है।
करवा चौथ वाले दिन महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करके पूजा घर की और अपने घर की साफ सफाई करके सभी देवी देवताओं की पूजा करती है और करवा चौथ पर निर्जल व्रत रखने का संकल्प लेती है। करवा चौथ व्रत की शुरुआत सरगी से होती है। शाम के समय महिलाएं सोलह सिंगार करके शुभ मुहूर्त में करवा चौथ की पूजा व्रत कथा का पाठ करती हैं। पूजा करने के बाद चांद की पूजा करती है और चांद को अर्घ्य देती है फिर छलनी से पहले चांद को देखिए फिर अपने पति को देखकर उनकी आरती उतारकर अपना व्रत खोलती है। अब यह त्योहार पूरे देश में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।
करवा चौथ का मतलब क्या होता है?
करवा चौथ दो शब्दों से मिलकर बना है। करवा का मतलब होता है मिट्टी का बर्तन जिसे भगवान गणेश का स्वरूप माना जाता है और कलस में लगी टोटी भगवान गणेश की सूंड का प्रतीक है और चौथ का मतलब होता है चतुर्थी मतलब भगवान गणेश की प्रिया तिथि। करवा चौथ पर सुहागन महिलाएं मिट्टी या तांबे का कलश, दीपक, सिंख, छलनी का प्रयोग करती है पूजा में।
कलस से चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। कलश सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। कलस में सभी तीर्थ स्थान, ग्रह नक्षत्र, देवी देवता, नदियां, सागर यह सभी कलस में विराजते हैं। करवा चौथ वाले दिन सुहागिन महिलाएं कलस में पानी भरकर उस पर मिट्टी का दिया रखती है। उस दीपक में गेहूं या जों रखे जाते हैं जो सुख, शांति, समृद्धि, खुशहाली का प्रतीक होते हैं। इसी तरह करवा चौथ की पूजा में सिंख का होना भी जरूरी है क्योंकि यह सिंक मां करवा का प्रतीक हैं। चंद्रमा को छलनी से इसलिए देखा जाता है क्योंकि चांद में जो काला दाग है वह विष के समान है, और ऐसे में वह अपना विष छोड़ता है, इसलिए चांद को छलनी से देखने की परंपरा है।
करवा चौथ पर चांद की पूजा क्यों की जाती है?
चंद्रमा सुंदरता और प्रेम का प्रतीक माना जाता है और यह ब्रह्मा जी का रूप भी माना जाता है। इसकी पूजा करने से दीर्घायु प्राप्त होती है। इसीलिए करवा चौथ के दिन महिलाएं चंद्रमा की पूजा करके अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं।
यदि चंद्रमा नहीं दिखाई दे तो भगवान शिव के मस्तिष्क पर चंद्रमा विराजमान है उसके दर्शन करके आप चंद्रमा की पूजा कर सकते हैं। चंद्रोदय का सही समय जानकर जिस दिशा में चंद्रमा निकलेगा उस दिशा की तरफ अपना मुख करके पूजा कर सकते हैं। चंद्रमा की आकृति को भी देखकर पूजा व्रत कर सकते हैं।
करवा चौथ व्रत की शुरुआत कैसे हुई?
माता पार्वती ने अपने पति के रुप में भगवान शिव को पाने के लिए व्रत किया था। इस दिन माता पार्वती ने पूरे दिन बिना अन्न खाए और पानी पिए निर्जला उपवास किया और चांद को अर्घ्य दिया था। तभी से यह है करवा चौथ व्रत की परंपरा चलती आ रही है। करवा चौथ के दिन साहूकार के सात लड़के वाली कथा पढ़ी जाती है। यह कथा कुछ इस प्रकार है-
प्राचीन काल में द्विज नामक ब्राह्मण के सात पुत्र थे और एक वीरावती नाम की कन्या थी। वीरावती पहली बार करवा चौथ का व्रत कर रही थी। व्रत के दिन भूख की वजह से वीरावती मूर्छित हो गई। वीरवती के भाइयों ने वीरवती के मुख पर जल डाला और एक भाई बरगद के पेड़ पर चढ़ गया और छलनी में दीपक दिखा कर अपनी बहन से कहां देखो चांद निकल आया। वीरवती इस अग्नि रूप को चंद्रमा समझकर अपना हर दुख छोड़कर चांद को अर्घ्य देकर भोजन करने बैठ गई। पहले कोर में बाल निकल आया, दूसरे कोर में छींक आ गई और तीसरे कोर में ससुराल से बुलावा आ गया। जब वह अपने ससुराल गई तो उसने वहां पर अपने पति को मरा हुआ देखा। संयोग से इस समय वहां पर इंद्राणी आई और उन्हें देखकर वीरावती विलाप करते हुए उनसे बोली कि हे मां मुझे यह किस अपराध की सजा मिल रही है? वीरवती प्रार्थना करते हुए बोली मां मेरे पति को जीवित कर दीजिए। इंद्राणी ने वीरावती को बताया कि तुमने करवा चौथ का व्रत चंद्रमा के बिना अर्घ्य दिए व्रत खोल दिया। यह सब उसी के फल से हुआ है। अतः तुम बारह महा के चौथ के व्रत और करवा चौथ का व्रत श्रद्धा और भक्ति से विधि पूर्वक करो तब तुम्हारा पति पुनः जीवित हो उठेगा। इंद्राणी की बात सुन विरावती ने विधिपूर्वक 12 माह के चौथ और करवा चौथ व्रत को बड़ी भक्ति भाव से किया और इन व्रत के प्रभाव से उसका पति पुनः जीवित हो गया।
इस तरह की और भी करता है जो महिलाएं सुनती और पढ़ती है।