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गोवर्धन पूजा क्यों की जाती है ? क्या है गोवर्धन पूजा का रहस्य ?

 

दिवाली जिसे पांच पर्व कहा जाता है। इस त्यौहार का आरंभ धनतेरस से होता है और समापन भाईदूज के साथ होता है। दिवाली के बाद और भाई दूज से पहले गोवर्धन पूजा मनाई जाती है। इस दिन गायों की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। गायों को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अपनी मां यशोदा से कहा कि इंद्रदेव का वर्षा करना उनका कर्तव्य है इसलिए उनकी पूजा करने की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाए क्योंकि गोवर्धन पर्वत पर गाय चरती है। श्री कृष्ण की यह बात सुनकर सभी बृजवासी इंद्रदेव की पूजा की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इससे इंद्रदेव बहुत नाराज हो गए और उन्होंने मूसलधार बारिश शुरू कर दी। भगवान श्री कृष्ण ने मूसलधार वर्षा से बृजवासियों को बचाने के लिए श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को 7 दिन तक अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर रखा था और उसकी छाया में सभी बृजवासी सुख से 7 दिन तक रहे। जब वह बारिश बंद हो गई तब भगवान श्री कृष्ण ने उस गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा करने और अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। गोवर्धन पूजा इंद्रदेव पर भगवान श्री कृष्ण की जीत याद दिलाती है। इस त्यौहार पर सभी लोग भगवान श्री कृष्ण की और गायों की पूजा करते हैं। इस दिन कृष्ण मंदिर को फूलों से, रोशनी से और दीपक से सजाया जाता है। भोग के लिए सभी प्रकार के अन्न से प्रसाद तैयार किया जाता है भगवान श्री कृष्ण के लिए। इसीलिए गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहते हैं।

                         

गोवर्धन पूजा हर साल कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को करते हैं। इस दिन गोवर्धन पर्वत, भगवान श्री कृष्णा और गौ माता की पूजा की जाती है। इस वर्ष 2023 में गोवर्धन पूजा उदय तिथि को देखते हुए 14 नवंबर को मनाई जाएगी। 14 नवंबर 2023 दिन मंगलवार को गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6:45 से लेकर 8:52 तक है। इस वर्ष गोवर्धन पूजा के दिन शुभ योग बन रहे हैं। शुभ योग प्रात काल से लेकर दोपहर 1:57 तक रहेगा।

                        

गोवर्धन पूजा कैसे करते हैं?

शुभ मुहूर्त में गाय के गोबर से गिरिराज गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं और साथ में पशुधन यानी गाय और बछड़े की भी आकृति बनाएं। भगवान श्री कृष्णा और गोवर्धन की धूप, फल, फूल, खील, खिलौने, मिष्ठान आदि से पूजा अर्चना और कथा आरती करते हैं और परिक्रमा भी करते हैं। शाम को इनका अन्नकूट से भोग लगाकर आरती की जाती है।

गोवर्धन पूजा पर भगवान श्री कृष्ण को गेहूं, चावल और बेसन से तैयार सब्जी व पत्तेदार सब्जियां भी अर्पित की जाती हैं। शहद, चीनी, दही, दूध, सूखे मेवे और तुलसी से तैयार किया गया पंचामृत भगवान श्री कृष्ण को और फिर भक्तों को प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है। संध्या समय में तुलसी के पौधे के पास दीपक जरूर जलाएं। इस दिन पीपल के पेड़ के पास दिया जलाने से व्यक्ति को किसी भी मुसीबत का सामना नहीं करना पड़ता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करें और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ जरूर करें। इस पाठ को करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। गोवर्धन पूजा परिवार के सभी सदस्य साथ में करें।

गोवर्धन पूजा वाले दिन अन्नकूट बंद कमरे में ना बनाएं। इस दिन चंद्रमा को भूलकर भी ना देखें। गोवर्धन की पूजा के दिन गाय की पूजा करना ना भूले। गोवर्धन के परिक्रमा गंदे कपड़े पहनकर न करें। परिवार में सभी सदस्यों को गोवर्धन पूजा साथ में करनी चाहिए।

गोबर से गोवर्धन कैसे बनाएं?

गोवर्धन पूजा के लिए गाय का ताजा गोबर होना चाहिए ध्यान रहे गाय सफेद होनी चाहिए। गर्भवती गाय का गोबर गोवर्धन पूजा में इस्तेमाल नहीं किया जाता है। माना जाता है कि इस अवसर के लिए गर्भवती गाय का गोबर अशुभ माना जाता है। ध्यान दें कि गोबर में किसी भी तरह की अशुद्धियां ना मिली हो। गाय के गोबर से गोवर्धन घर के आंगन में बनाए जाते हैं। गोवर्धन बनाने के बाद उसके ऊपर सफेद रंग की सीखे लगा दी जाती है और उस पर रुई लपेट दी जाती है

                     

गोवर्धन पूजा करने से क्या लाभ होता है?

गोवर्धन पर्वत की पूजा और परिक्रमा करने से व्यक्ति को इच्छा अनुसार फल मिलता है। ऐसा माना जाता है कि जो गोवर्धन की पूजा करते हैं उनके घर में धन और समृद्धि का लाभ होता है और परिवार में खुशहाली बनी रहती है। इस दिन भक्तजन भगवान श्री कृष्ण को छप्पन भोग अर्पित करते हैं।

                       

गोवर्धन पर्वत का रहस्य।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एक जमाने में इस पर्वत की विशालकाय ऊंचाई के पीछे सूरज तक छुप जाता था। लेकिन अब गोवर्धन पर्वत का कद रोजाना मुट्ठीभर कम होता जा रहा है। ऐसा कहा जाता है कि 5000 साल पहले गोवर्धन पर्वत करीब 30,000 मीटर ऊंचा हुआ करता था। अब इसकी ऊंचाई 25 या 30 मीटर रह गई है। गोबर्धन व इसके आसपास के क्षेत्र को ब्रजभूमि भी कहा जाता है। यह भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थली है। यहीं पर भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग में बृजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया था। जब इंद्रदेव ने मूसलधार वर्षा की तब भगवान जी कृष्ण ने अपने कनिष्ठ उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर बृजवासियों की रक्षा की थी। गोवर्धन पर्वत को भक्त लोग गिरिराज जी भी कहते हैं। गोवर्धन पर्वत के ऊपर चक्रेश्वर महादेव जी का मंदिर है।

गोवर्धन पूजा चौथ के दिन आती है इसलिए इस दिन विश्वकर्मा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। विश्वकर्मा दिव्य बढ़ई और कुशल शिल्पकार थे। जिन्होंने देवताओं के हथियार बनाए और उनके नगरों और रथों का निर्माण किया। विश्वकर्मा पौराणिक शहर लंका के वास्तुकार थे। कहा जाता है कि विश्वकर्मा ने पुरी उड़ीसा में जगन्नाथ की महान प्रतिमा भी बनाई थी।

                          

गोवर्धन पर्वत को श्राप क्यों मिला?

पौराणिक कथाओं के अनुसार पुलस्त्य ऋषि गोवर्धन पर्वत पर मोहित होकर वे उन्हें काशी ले जाना चाहते थे। इससे दुखी होकर गोवर्धन वृंदावन में जब ब्रिज पहुंचे तो उन्होंने सोचा कि इसी भूमि पर भगवान श्री कृष्ण जन्म लेने वाले हैं और गाय चराने वाले हैं ऐसे में वह उनके पास रहकर मोक्ष पा लेंगे। यह सोचकर गोवर्धन ने अपना वजन भारी कर लिया। जिसे उठाने पर पुलस्त्य ऋषि को आराम की जरूरत पड़ गई और उन्होंने गोवर्धन पर्वत को वहीं जमीन पर रख दिया। इसके बाद गोवर्धन ने  पुलस्त्य ऋषि से साथ चलने पर मना कर दिया। तब क्रोध में आकर पुलस्त्य ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को हर रोज मुट्ठीभर छोटा होने का श्राप दे दिया।

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