नमस्कार दोस्तों आज हम आपको इस लिस्ट में बताने जा रहे हैं कि तुलसी पूजन कब है। इस लेख में हम आपको तुलसी पूजन की सही तारीख व तुलसी पूजन या तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त व तुलसी पूजन की संपूर्ण विधि बताने जा रहे हैं।
हम आपको इस लेख में बताएंगे की तुलसी पूजन करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है किन कार्यों को तुलसी विवाह या तुलसी पूजन करते समय नहीं करना चाहिए, तुलसी पूजा के दौरान पूजन की थाली में किन वस्तुओं को रखना चाहिए, किस प्रकार तुलसी पूजा की जानी चाहिए ताकि वह फलदाई हो, किन मित्रों का उच्चारण तुलसी पूजन करते समय करना चाहिए ताकि वह फलदायक हो सके, आदि तुलसी पूजा से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां आपको इस लेख में देने की पूरी कोशिश की गई है इसलिए लिखो पूरा और ध्यान से पढ़ें,
तुलसी पूजन कब है जान सही तारीख व शुभ मुहूर्त
तुलसी पूजन की कथा बहुत पुरानी है जिसका विस्तार से जानकारी आपको आगे इस लेख में पढ़ने को मिलेगी।
तुलसी पूजन हजारों वर्षों से चला आ रहा है यह त्यौहार हिंदुओं के अन्य त्योहारों में से एक बहुत ही खास स्थान बनाए हुए हैं। सनातन धर्म में तुलसी विवाह या तुलसी पूजन की विशेष मान्यता है। तुलसी पूजन को तुलसी विवाह भी कहा जाता है यह पर वी हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है। यदि बात करें इस वर्ष आने वाले तुलसी विवाह की तो पंचांग के अनुसार इस वर्ष तुलसी पूजन या तुलसी विवाह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष मैं द्वादशी की तिथि को 23 नवंबर को गुरुवार के दिन शाम को 9 बजकर 01 मिनट से प्रारंभ हो जाएगा जो की अगले दिन 24 नवंबर 2023 को शुक्रवार के दिन शाम के 7 बजकर 6 मिनट पर समाप्त हो जाएगा।
इस दिन को बताए गए मुहूर्त के बीच में यदि आप तुलसी विवाह की पूजा को विधि विधान पूर्वक पूर्ण करते हैं तो ऐसा माना जाता है कि इस तुलसी विवाह करने से घर में धन-धान्य का आगमन होता है और शादी में तुलसी विवाह को विधि विधान पूर्वक पूर्ण करने मात्र से ही वैवाहिक जीवन में भी सुख शांति बनी रहती है।
तुलसी विवाह का महत्व क्यों है ?
तुलसी विवाह जैसे कुछ लोग तुलसी पूजन के नाम से भी जानते हैं इस पर्व का सनातन धर्म में विशेष स्थान है। मान्यता है कि, कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष में द्वितीया तिथि को पढ़ने वाले तुलसी विवाह को वेद विधान पूर्वक करने से घर में सुख शांति बनी रहती है, घर में क्लेश काम हो जाते हैं, धन-धान्य में वृद्धि होने लगती है, घर में बढ़ रहे टकराव कम हो जाते हैं, रुके हुए कम दिन में बाधा आ रही होती है वह भी धीमें धीमें सुचारू रूप से चलने लगते हैं और साथ ही ऐसी मान्यता भी है कि इस दिन फिर विधान पूर्वक से जो भी स्त्री तुलसी-शालिग्राम जी का विवाह करती है उसके परिवार में सकारात्मक आने लगती है।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन किसी ऐसी लड़की द्वारा तुलसी विवाह करने से जिसके जीवन मैं विवाह संबंधी रुकावटें आ रही होती हैं तो उसे लड़की को विवाह संबंधी आ रही समस्याओं से भी राहत मिल जाती है। मान्यता यह है कि इस दिन जो स्त्री तुलसी पूजन की प्रक्रिया को विधि विधान पूर्वक करती है उसको एक कन्यादान के बराबर पुण्य प्राप्त होता है और तुलसी शालिगराम विवाह को जितनी बार भी जो स्त्री करती है उसे उतने ही बार का कन्यादान के समान पुण्य प्राप्त होता है।
तुलसी विवाह की कथा क्या है ?
आद्यातिमिक पुस्तकों की माने तो तुलसी विवाह की कथा कुछ इस प्रकार सुनने को मिलती है कि “एक समय की बात है जलंधर नाम का एक बहुत ही ताकतवर और पराक्रमी राक्षस था जिसका एक वृंदा नाम की लड़की लड़की से विवाह हुआ वृंदा भगवान विष्णु की अनन्य भक्त और पतिव्रता स्त्री थी। वृंदा भगवान विष्णु की अनन्य भक्त होने के कारण दिनभर भगवान विष्णु की भक्ति किया करती थी पूजा पाठ आदि से भगवान विष्णु को उसने प्रसन्न किया जिसका फल वृंदा के पति जलंधर को भी मिला जिसके कारण जालंधर अजय हो गया था। अब जलंधर से वृंदा के पुण्यों के कारण कोई भी जीत नहीं पा रहा था जो भी जालंधर के सामने आता मुंह की खाकर चला जाता था। जिसके करण जलंधर को अपनी शक्तियों को लेकर बहुत अभिमान हो गया और अब वह सभी देवी देवताओं, मनुष्यों, गंधर्व आदि सभी को बहुत परेशान करने लगा जिसके कारण तीनों लोकों में त्राहि त्राहि मचने लगी। जलंधर के बढ़ते आतंक को देखकर सभी देवी देवता दुखी होकर भगवान विष्णु की शरण में गए और उनसे विनती की की है प्रभु हमें इस संकट से मुक्ति दिलाए।
देवी देवताओं ऋषि मुनियों आज की समस्या को देखकर भगवान विष्णु ने इस समस्या का समाधान करने का निर्णय किया, किंतु यह काम इतना भी आसान नहीं था वृंदा के पुण्य कर्म और पतिव्रता के कारण कोई भी जलंधर को परास्त नहीं कर सकता था इसलिए भगवान विष्णु ने खुद जलंधर का रूप धारण किया और छल से वृंदा के पतिव्रता धर्म को नष्ट कर दिया। वृंदा के पति व्रत धर्म के नष्ट होते ही जलंधर की सभी शक्तियां नष्ट हो गई और वह युद्ध में मर गया।
इसके बाद जब वृंदा को अपने पति व्रत धर्म के भगवान विष्णु द्वारा छल से नष्ट होने की बात का पता चला तब वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वे शिला के बन जाएं इसके बाद भगवान विष्णु शिला के बन गए। भगवान विष्णु के शिला बन जाने के करण ब्रह्मांड का संतुलन बिगड़ने लगा। ब्रह्मांड के बिगड़ते हुए संतुलन को देखकर सभी देवी देवताओं ने वृद्धा से प्रार्थना की कि वे भगवान विष्णु को दिया हुआ अपना श्राप वापस ले लें। देवी देवताओं की प्रार्थना को सुनते हुए वृंदा ने भगवान विष्णु से अपना श्राप वापस ले लिया ।
किंतु भगवान विष्णु वृंदा के साथ हुए चल से बहुत लज्जित थे जिसके कारण उन्होंने वृंदा के शराब को जीवित रखने के लिए खुद के एक रूप को पत्थर का बना लिया जिसे शालिग्राम कहा गया।
भगवान विष्णु से वृंदा ने अपना श्राप वापस लेने के बाद खुद को जलंधर के साथ सती कर लिया। वृंदा के सती होने के बाद वृन्दा की राख से एक तुलसी का पौधा निकला । वृद्धा की पतिव्रता धर्म और मर्यादा को जीवित बनाए रखने के लिए देवी देवताओं ने भगवान विष्णु के शालिग्राम जी के रूप को तुलसी के पौधे के साथ विवाह कर दिया जिसके बाद यह एक रीत बन गई। इसी घटना को प्रतिवर्ष याद रखने के लिए और पतिव्रता धर्म का बखान करती यह कथा प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में द्वितीय तिथि को मनाई जाती है।
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