हमारे देश के मुख्य त्योहारों में से छठ पूजा भी एक त्योहार है। इस त्यौहार पर छठी माता और सूर्य देव की पूजा की जाती है। इस पूजा में 36 घंटे का निर्जल व्रत रखा जाता है। छठ पूजा कार्तिक माह की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला हिंदू पर्व है। यह त्यौहार मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्र में मनाया जाता है। छठ पूजा का त्योहार मैथिली, मगध और भोजपुरी लोगों का सबसे बड़ा त्यौहार है। यह उनकी संस्कृति है और यह लोग बहुत ही धूमधाम से इस त्यौहार को मानते हैं। छठ पूजा एकमात्र ऐसा त्यौहार है जो वैदिक काल से बिहार और पूरे भारत में चला आ रहा है। अब यह त्यौहार बिहार की संस्कृति बन गया।
इस वर्ष 2023 में 17 नवंबर को छठ पूजा की शुरुआत हो जाएगी। इस पूजा की शुरुआत प्रति नहाए खाए से करेगी और 20 नवंबर को ऊषा अर्घ्य और पारण के साथ इस व्रत का समापन करेंगी।
छठ पूजा क्यों मनाई जाती है?
छठ पूजा की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। इस पूजा को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके इस पूजा की शुरुआत की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। करण रोज भगवान सूर्य को घंटे पानी में खड़े होकर अर्घ्य देते थे। करण भगवान सूर्य की कृपा से ही महान योद्धा बने। आज भी छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा प्रचलित है।
छठी मैया कौन है?
छठी भैया को सूर्य देव की बहन और ब्रह्मा देव की मानस पुत्री माना जाता है। इनका नाम षष्ठी मैया है जिन्हें हम छठी मैया कहते हैं। छठ पूजा में सूर्य देव के साथ छठी मैया का भी पूजन किया जाता है।
जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की तब उन्होंने अपने शरीर के दो हिस्से किया दाएं भाग पुरुष और बाएं भाग प्रकृति। प्रकृति के छठे भाग से षष्ठी देवी की उत्पत्ति हुई। इनको देवसेना भी कहा जाता है। जो व्यक्ति सृष्टि देवी की पूजा करता है उसके मन की मुराद अवश्य पूरी होती है।
छठ पूजा कैसे की जाती है?
छठ पूजा का त्योहार पूरा 4 दिन तक चलता है। इसकी शुरुआत नहाए खाए से होती है और उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देखकर इस पूजा का समापन होता है। यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहले चैत्र माह में दूसरा कार्तिक माह में। चैत्र शुक्ल पक्ष मैं मनाए जाने वाली छठ पूजा को ‘चैत्री छठ’ कहते हैं।
छठ पूजा महापर्व है इस पर्व में भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा की जाती है और डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। मान्यता है कि सूर्य को अर्घ्य देने से सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसके बाद रात्रि के समय जागरण किया जाता है। छठी मैया की कथा सुनी जाती है और गीत गाए जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठी मैया की कथा सुनने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
छठ पूजा की कई अलग अलग ऐतिहासिक कथाएं हैं।
इस पूजा का इतिहास इतिहास बहुत ही पुराना बताया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक छठ पूजा सतयुग से जुड़ी हुई है। ऐसी कई कथाएं मिलती है जिसमें राजा प्रियाबंद, भगवान राम, पांडवों के अलावा दानवीर कर्ण की भी कहानी का जिक्र मिलता है।
कथाओं के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए तब द्रौपदी ने छठ पूजा का व्रत रखा था। इसके बाद पांडवों को छठी मैया के आशीर्वाद से उनका राज वापस मिल गया। सूर्य देव और छठी मैया का संबंध भाई बहन का है। इसलिए छट पर्व पर सूर्य देव की पूजा करना फलदाई मानी जाती है।
माता सीता ने भी सूर्य देवता की पूजा की थी। जब राम सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या वापस आए थे। तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का निर्णय लिया। उन्होंने पूजा के लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुगल ऋषि ने सबसे पहले माता सीता को गंगाजल छिड़क कर उन्हें पवित्र किया फिर उन्होंने कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। सीता माता ने मुगल ऋषि के आश्रम में 6 दिन तक सूर्य देव की पूजा की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान करके सूर्य देव से आशीर्वाद लिया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि छठ पूजा की शुरुआत द्रोपदी ने की थी।
एक समय की बात है राजा प्रियाबंद जिनकी पत्नी का नाम मालिनी था। विवाह के कई सालों बाद भी उनके कोई संतान नहीं थी। तब उन्होंने कश्यप ऋषि से इस समस्या का समाधान पूछा तो कश्यप ऋषि ने यज्ञ करने का सुझाव दिया। कश्यप ऋषि ने पुत्र प्राप्ति के लिए राजा से यज्ञ कराया और उनकी पत्नी मालिनी को प्रसाद में खीर दी। उसके बाद रानी गर्भवती हो गई जिससे राजा बहुत ही प्रसन्न हुए। कुछ समय बाद राधे ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन वह पुत्र मृत पैदा हुआ। यह सुनकर राजा बहुत दुखी हो गए। वे अपने पुत्र के शव को शमशान ले गए और दुख के कारण अपने भी प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया। जब राजा अपने प्राण त्याग ने जा रहे थे तभी देवी देवसेना प्रकट हुई। देवी देवसेना ने राजा को अपना नाम षष्ठी बताया। देवी ने राजा से कहा तुम मेरी पूजा करो और भी लोगों को इस पूजा को करने के लिए प्रेरित करो। राजा ने देवी देवसेना की आज्ञा मानकर कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को पूजा की। उन्होंने यह पूजा पुत्र प्राप्ति की कामना से की थी। छठी मैया के आशीर्वाद से राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई। तब से कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा की जाने लगी।
जो व्यक्ति जिस मनोकामना के साथ इस छठ पूजा का व्रत रखता है और उसे विधि विधान से पूरा करता है तो छठी मैया के आशीर्वाद से उसकी हर मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। लोग संतान प्राप्ति और संतान के सुखी जीवन के लिए इस व्रत को रखते हैं।
बिहार में छठ पूजा 4 दिन तक मनाई जाती है जिसे नहाए खाए, खरना और उगते हुआ डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। इस व्रत को ज्यादातर नहीं संतान महिलाएं ही रखती हैं।
छठ पूजा के नियम।
छठ मैया को प्रसन्न करने के लिए कठिन नियमों का पालन किया जाता है और उन नियमों का पालन करने के लिए बहुत ही संयम की जरूरत होती है। कहा जाता है कि इन नियमों का पालन करने पर ही छठी मैया का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
छठ पूजा शुरू हो जाती है तो घरों में प्याज और लहसुन इस्तेमाल होना बिल्कुल बंद हो जाता है। सात्विक भोजन किया जाता है। छठ पूजा का प्रसाद बनाते समय साफ सफाई का बेहद ध्यान रखा जाता है। इस प्रसाद को केवल वही लोग बना सकते हैं जिन्होंने छठ पूजा का व्रत रखा हो। प्रसाद में प्रयोग किए जाने वाले अन्य को घर पर ही तैयार किया जाता है। छठी मैया की पूजा में चढ़ाए जाने वाली हर चीज अखंडित होनी चाहिए। इस पूजा में उन फल फूलों का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता है जो किसी पक्षी द्वारा झूठा किया गया हो या किसी कारण से कटा हुआ हो। पूजा के दौरान पहने जाने वाली साड़ी भी अखंडित हो। मतलब उसे साड़ी पर सी का इस्तेमाल ना हुआ हो और वह कहीं से भी कटी फटी ना हो। वह साड़ी एकदम नई और कोरी होनी चाहिए। पूजा में बांस से बने सूप और टोकरी का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा नए सूप और थल इस्तेमाल किए जाते हैं। जो लोग छठ पूजा का व्रत रखते हैं उन्हें जमीन पर चटाई बचाकर सोना चाहिए बिस्तर पर सोना उनके लिए वर्जित है।
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