दशहरा जो कि अधर्म पर धर्म की जीत की निशानी का त्योहार है। इसी दिन श्री राम ने रावण का वध कर बुराई पर अच्छाई की जीत का परचम लहराया था, जिसके बाद से इस दिन की एक त्योहार के रूप में दशहरा नाम से मनाया जाने लगा । आपको बता दें कि दशहरे के त्योहार को पूरे देश में मनाया जाता है, लेकिन भारत के कई राज्यों में दशहरा नहीं मनाया जाता वहाँ पर रावण का दहन भी नहीं लिया जाता।
हम आपको इस लेख में दशहरा पर किन राज्यों के किन किन शहरों में रावण का दहन नही किया जाता है इसी के संबंध में सम्पूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं। इसलिए लेख को पूरा और ध्यान से पढ़े,
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इन शहरों में नहीं मनाया जाता दशहरा, जाने पीछे छुपा कारण
आपको बता दें कि भारत के हर हर राज्य में दशहरा के पर्व को बहुत धूमधाम से और रावण का पुतला जलाकर मनाया जाता है जो कि धर्म पर धर्म की जीत को दर्शाता है किंतु इनमें से कुछ राज्य ऐसे भी हैं जिनमें कुछ शहरों गांव आदि में दशहरा को नहीं मनाया जाता और ना ही रावण का दहन किया जाता है बल्कि उसके बदले में इसका शोक किया जाता है। इसके पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं जिनका पालन इन शहरों के जन सामान्य पूरी तरह से करते हैं तो आईए जानते हैं कि इन राज्यों में उनके शेरों के क्या नाम है जो रावण का दहन नहीं करते हैं और उठते हैं इसके पीछे छिपी की कहानियों से पर्दा…
राज्य जिनमे नहीं जलाया जाता रावण का पुतला, जाने क्या है कारण ?
भारत में रावण को जलाया जाना भले ही एक प्रथा बन चुका है किंतु महाराष्ट्र उत्तराखंड उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश और राजस्थान के भी कुछ राज्यों में इस प्रथा को नहीं माना जाता आपको बता दें कि महाराष्ट्र के गढ़चिरौली शहर में उत्तराखंड के कांगड़ा शहर में उत्तर प्रदेश के बिसरख शहर में और मध्य प्रदेश के मंदसौर शहर में वह राजस्थान के मंडोर शहर में विजयदशमी अर्थात दशहरा के उत्सव को नहीं मनाया जाता नहीं मनाई जाने का अर्थ यह नहीं है कि उसका विरोध किया जाता है बल्कि वहां पर पूर्णता दशहरा मनाया जाता है केवल रावण का दहन नहीं किया जाता।
इसके पीछे कही कहानियां प्रचलित है जो कि इन शहरों या गांव आदि में जन सामान्य से सुनने को मिलती हैं बता दें कि यह कहानी उन्होंने बताएं किंतु उनका कहना था कि हमें भी यह कहानी हमारे पूर्वजों से सुनने को मिली हैं जिसका की पालन हम बरसों से करते चले आ रहे हैं और आगे भी करते जाएंगे,
उत्तर प्रदेश (बिसरख) : बता दें उत्तर प्रदेश के बिसरख शहर में रावण को इसलिए दहन नहीं किया जाता क्योंकि यहां के लोग मानते हैं कि रावण का जन्म यहीं पर हुआ था जिसके कारण लोग रावण को अपना मानते हैं और खुद को रावण का वंशज बताते हैं यही कारण है कि यहां पर कभी भी रावण का दहन नहीं किया जाता किंतु विजयदशमी के इस पर्व पर राम जी की पूजा की जाती है ऐसा नहीं है कि वहां पर रावण की भी पूजा की जाती हो किंतु वहां पर रावण की मृत्यु का शोक मनाया जाता है।
महाराष्ट्र (गडचिरोली) : महाराष्ट्र राज्य के गडचिरौली में भी रावण को नहीं जलाया था क्योंकि यहां के जो गोंड जनजाति के लोग हैं वह खुद को रावण का वंशज बताते हैं और रावण को अपना पूर्वज, क्योंकि पूर्वज का अपमान नहीं किया जाता इसलिए वे भी रावण का दहन नहीं करते। ऐसा नहीं है कि वे रावण के दहन के विरुद्ध हैं किंतु वे खुद रावण का है दहन नहीं करते जो लोग रावण का दहन करते हैं वह उन्हें भी कभी रोकते टोकते नहीं है।
उत्तराखंड ( कांगड़ा ) : उत्तराखंड के कांगड़ा में रहने वाले लोगों का यह मानना है कि यहां पर रावण ने शिवजी की एक बार तपस्या की थी और इसीलिए यह लोग रावण को भगवान शिव का सबसे बड़ा भक्त मानते हैं यही कारण है कि उत्तराखंड के कांगड़ा गांव में रावण का दहन नहीं किया जाता बल्कि उसका सम्मान किया जाता है शिव के सबसे बड़े भक्त के रूप में।
राजस्थान ( मंडोर ) : बता दे की राजस्थान के मंडोर मैं भी रावण का दहन लोग इस कारण वर्ष नहीं करते क्योंकि यहां के लोग यह मानते की मंडोर रानी मंदोदरी के पिता की राजधानी हुआ करता था और यहीं पर रावण और मंदोदरी का विवाह हुआ था जिसके कारण यहां के लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं। और हमारे संस्कारों के अनुसार दामाद की बेइज्जती नहीं की जाति और ना ही उसके मृत्यु का शोक मनाया जाता है यही कारण है कि यहां पर भी रावण का वध नहीं किया जाता।
मध्य प्रदेश ( मंदसौर ) : आपको बता दें कि मध्य प्रदेश का जो मंदसौर गांव है वहां पर मंदोदरी का मायका था जिसके कारण लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं और दामाद का अपमान नहीं किया जाता और ना ही उसकी मृत्यु की खुशी मनाई जाती है इसी कारण बस यहां के लोग भी श्रवण का दहन नहीं करते।
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